सुप्रीम कोर्ट में कांवड़ यात्रा और QR कोड विवाद

प्रस्तावना

भारत की धार्मिक परंपराएं सदियों से जन-जीवन का हिस्सा रही हैं, और तकनीक का उपयोग जब इन परंपराओं से जुड़ता है, तो संवैधानिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता पर सवाल उठना स्वाभाविक हो जाता है। कांवड़ यात्रा के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा QR कोड से जुड़ा नया आदेश इसी बहस को जन्म दे रहा है।

2025 की कांवड़ यात्रा से पहले, सरकार ने तीर्थ मार्ग पर आने वाले मठ, मंदिर और दुकानों को एक QR कोड रजिस्ट्रेशन सिस्टम से जोड़ने का निर्देश जारी किया। इस पर आपत्ति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई, जिसमें इसे निजता का उल्लंघन बताया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए 22 जुलाई 2025 को अगली सुनवाई तय की है।

याचिका में क्या कहा गया?

याचिका में कई संवेदनशील बिंदु उठाए गए हैं:

QR कोड के माध्यम से धार्मिक पहचान उजागर हो सकती है, जिससे धार्मिक प्रोफाइलिंग का खतरा है।

यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धर्म की स्वतंत्रता और निजता के अधिकार पर सीधा आघात है।

इससे स्थानीय लोगों और दुकानदारों की सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती है।

वकील संजय पराशर की ओर से दायर इस याचिका में अनुरोध किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट इस नीति पर तत्काल रोक लगाए।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि:

> “कोई भी नीति नागरिकों के मौलिक अधिकारों को दरकिनार कर लागू नहीं की जा सकती।”

न्यायालय ने यह भी कहा कि इस मामले में अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

तकनीक बनाम संविधान: असली मुद्दा क्या है?

1. धार्मिक प्रोफाइलिंग का डर

QR कोड से संबंधित डेटा यदि सार्वजनिक होता है, तो इससे यह पता लगाया जा सकता है कि कौन-सी दुकान या मंदिर किस समुदाय से संबंधित है। इससे धार्मिक हिंसा या भेदभाव का खतरा बढ़ जाता है।

2. निजता का हनन

2017 में सुप्रीम कोर्ट ने निजता को एक मौलिक अधिकार करार दिया था। सरकार द्वारा धार्मिक स्थलों और व्यवसायों की ट्रैकिंग इस अधिकार का उल्लंघन माना जा सकता है।

3. अभिव्यक्ति और धर्म की स्वतंत्रता

यदि QR कोड की वजह से किसी धर्म विशेष के लोगों को निशाना बनाया जाता है, तो यह संविधान के अनुच्छेद 19 और 25 के खिलाफ है।

विशेषज्ञों की राय

प्रोफेसर अजय कुमार (संवैधानिक विशेषज्ञ) के अनुसार:

> “QR कोड नीति डेटा निगरानी की शुरुआत है, जो यदि बेकाबू हुई, तो यह ‘बिग ब्रदर स्टेट’ की दिशा में पहला कदम बन सकती है।”

वहीं कानून विशेषज्ञ नीलिमा सक्सेना का मानना है:

> “यह धार्मिक स्वतंत्रता को बाधित करने वाला कदम है और सुप्रीम कोर्ट को इसे गंभीरता से लेना चाहिए।”

सरकार की दलील

राज्य सरकार की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन अधिकारियों का दावा है कि:

QR कोड व्यवस्था से श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा व्यवस्था बेहतर होगी।

इससे फर्जी दुकानों और भ्रामक गतिविधियों पर नियंत्रण रहेगा।

डेटा ट्रैकिंग से आपात स्थिति में त्वरित मदद संभव हो सकेगी।

क्या पहले भी ऐसा हुआ है?

इससे पहले हज यात्रा और अमरनाथ यात्रा में भी यात्रियों के लिए डिजिटल पंजीकरण लागू किया गया था, लेकिन धार्मिक स्थलों और दुकानों पर इस तरह की डिजिटल निगरानी पहली बार सामने आई है।

अगली सुनवाई कब है?

सुप्रीम कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई 22 जुलाई 2025 को करेगा, जहां सरकार को इस नीति के पीछे का पूरा तर्क पेश करना होगा। यदि कोर्ट इस नीति को गैर-संवैधानिक मानता है, तो यह तकनीकी निगरानी की सीमाओं पर एक नया मानक (precedent) तय करेगा।

निष्कर्ष

QR कोड तकनीक भले ही सुविधा और पारदर्शिता का प्रतीक हो, लेकिन जब इसका प्रयोग धार्मिक स्थलों, निजता, और स्वतंत्रता से टकराने लगे, तो यह संविधान के मूल्यों पर सवाल उठाता है। सुप्रीम कोर्ट के आने वाले निर्णय से यह तय होगा कि भारत किस दिशा में जा रहा है — सुरक्षा और सुविधा की ओर या निगरानी और नियंत्रण की ओर।

FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

Q1: सुप्रीम कोर्ट में किस नीति पर सुनवाई हो रही है?

उत्तर: उत्तर प्रदेश सरकार की QR कोड नीति पर, जिसमें कांवड़ यात्रा मार्ग पर धार्मिक स्थलों और दुकानों को QR कोड से जोड़ने का निर्देश दिया गया है।

Q2: याचिकाकर्ता ने क्या आपत्ति जताई है?

उत्तर: याचिकाकर्ता का तर्क है कि यह नीति धार्मिक प्रोफाइलिंग और निजता के अधिकार का उल्लंघन करती है।

Q3: सुप्रीम कोर्ट ने क्या प्रतिक्रिया दी?

उत्तर: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है और 22 जुलाई को अगली सुनवाई तय की है।

Q4: यह नीति किन संवैधानिक अधिकारों से जुड़ी है?

उत्तर: अनुच्छेद 21 (निजता का अधिकार) और अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) से।

Q5: अगर कोर्ट नीति को असंवैधानिक करार देता है, तो क्या होगा?

उत्तर: इससे भविष्य में सभी डिजिटल निगरानी नीतियों पर कानूनी कसौटी तय होगी।

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