सिविल केस कैसे करें? (How to File a Civil Case) आसान गाइड हिंदी में – 2025″

सिविल मुकदमा की प्रक्रिया

क्या आपकी ज़मीन पर किसी ने ज़बरदस्ती कब्ज़ा कर लिया है? या आपने किसी को अपने पैसे उधार दिए हैं और वह लौटाने से इन्कार कर दिया है? यदि ऐसा है तो किस कानूनी माध्यम से आप अपना हक वापस प्राप्त कर पायेंगे, तो इसका कानूनी हल- सिविल मुकदमा है।

इस ब्लॉग में हम सिविल केस दर्ज करने की पूरी प्रक्रिया उदाहरण के साथ आपको बतायेंगे- जिससे आपको सारी प्रक्रिया समझने में आसानी हो। आइये आज का लेख शुरू करते हैं!

सिविल मुकदमा क्या होता है?

जब दो व्यक्तियों के किसी विवाद जैसे- पैसों संपत्ति का विवाद हो,पैसे की लेन-देन का मामला हो ,कोई अनुबंध या समझौते का उल्लंघन हो तो ऐसे में समाधान न्यायालय द्वारा मांगा जाता है तो उसे सिविल केस/मुकदमा कहते हैं।

नोट- “सिविल केस का उद्देश्य केवल न्याय और हक का दिलाना होता है। न कि सज़ा दिलाना।”

एक उदाहरण से समझिए-

शिवम जी ने अपने पड़ोसी राकेश जी को 10 लाख रूपए उधार दिया था। जिसमें लिखित एग्रीमेंट हुआ कि- 2 साल में पैसा वापस कर दिया जाएगा। एग्रीमेंट के अनुसार 2 साल पूरा होने पर राकेश जी ने पैसे लौटाने से इन्कार कर दिया। शिवम जी ने लीगल नोटिस भेजा जिसका कोई जवाब नहीं दिया।

ऐसे स्थिति में शिवम जी ने अपने हक को पाने के लिए न्यायालय का सहारा लेना उचित समझा। और केस करने न्यायालय चले आए।

प्रार्थना पत्र (Plaint) क्या होता है?

वह लिखित दस्तावेज जिसमें वादी (Plaintiff) अपना प्रार्थना पत्र न्यायालय में दाखिल करता है। आम भाषा में इसे दावा भी कहते हैं।
इसमें निम्न जानकारी होती है।

पहला चरण-

पक्षकारों (Plaintiff & Defendant) की जानकारी –

वादी (Plaintiff) – श्री शिवम, उम्र- 50 वर्ष, पता- प्रयागराज, उत्तर प्रदेश।
प्रतिवादी (Defendant)- श्री राकेश, उम्र 48 वर्ष, पता- प्रयागराज, उत्तर प्रदेश।

विवाद की पूरी कहानी (Case Details)-
वादी ने प्रतिवादी को 10 लाख रूपए दिया था, जो कि वापस नहीं किया है।
राहत के तौर पर (Relief)- प्रतिवादी 10 लाख रूपए 12 प्रतिशत ब्याज के साथ वादी को वापस करने का आदेश दिया जाए।

क्षेत्राधिकार (Jurisdiction)-
कर्ज और उसका एग्रीमेंट दोनों प्रयागराज में हुआ था इसलिए ये प्रयागराज न्यायालय के क्षेत्राधिकार में आता है।

घटना की मुख्य वजह(Cause of action)-
जब एग्रीमेंट का समय पूर्ण होने बावजूद कर्ज नहीं लौटाया गया, तब मुकदमा करने की वजह बनी।

दूसरा चरण-

मूल एग्रीमेंट
• बैंक द्वारा ट्रांसफर या कैश दिये पैसे का प्रमाण
• लीगल नोटिस की छायाप्रति (photo copy)
• पहचान पत्र (जैसे- आधार कार्ड, वोटर कार्ड, पासपोर्ट आदि)
• वकालतनामा (यदि वकील नियुक्त करते हैं)

तीसरा चरण-

न्यायालय शुल्क

मुकदमा की राशि पर न्यायालय शुल्क निर्भर करता है कि कितना शुल्क जमा होगा। उदाहरण स्वरुप – 10 लाख रूपए के मुकदमें में 8000-10000 रूपए न्यायालय शुल्क तक जमा करना पड़ सकता है।

चौथा चरण –

• शिवम और उनके वकील , न्यायालय में मुकदमा दाखिल करते है जिसमें दावा और दस्तावेज को जमा किया जाता है।
• उसके बाद न्यायालय शुल्क तय होता है और जमा होता है जिसकी रसीद फाइल में लगायी जाती है।

• दस्तावेज का सत्यापन होने के बाद मुकदमें का एक नम्बर (उदाहरणस्वरूप -110/2025) दिया जाता है।
• एक नियत तिथि मुकदमें की सुनवाई हेतु दी जाती है।

पांचवा चरण-

सम्मन भेजा जाएगा –

न्यायालय, प्रतिवादी को सम्मन जारी करेगी कि नियत तिथि को न्यायालय में उपस्थित होना एवं अपनी जवाबदेही देना सुनिश्चित करें।

इसका अगला भाग:- मुकदमा की जांच और पंजीकरण-न्यायालय पत्रावली (file) को कैसे जांच करता है?

(मुकदमें की इससे आगे की प्रक्रिया जानने के लिए हमारी वेबसाइट www.judiciaryofindia.com पर बने रहें।

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