Counter claim and replication in hindi
परिचय
सिविल वादों में केवल एक पक्ष की बात पर्याप्त नहीं मानी जाती है , बल्कि दोनों पक्षों को अवसर दिया जाता है क्योंकि दोनों पक्षों को सुनकर निर्णय देना न्याय का मूल सिद्धांत है। जब वादी (Plaintiff) मुकदमा दाखिल करता है, तो प्रतिवादी (Defendant) को भी अपनी लिखित बयान (Written Statement) दाखिल करने का अवसर दिया जाता है। लेकिन अगर प्रतिवादी, वादी के विरुद्ध कोई Counter Claim करता है, तो वादी को भी अधिकार होता है कि वह उसका उत्तर दे — जिसे प्रत्युत्तर (Replication) कहा जाता है।
इस लेख में हम समझेंगे:
Counter Claim क्या होता है?
Plaintiff उसका उत्तर कैसे देता है?
Replication क्या होती है और कब अनिवार्य होती है?
1. प्रति दावा (Counter Claim) क्या है?
परिभाषा:
वादी द्वारा किये गए दावा में जब प्रतिवादी को लगता है कि उसे भी हर्जाना या दावा करना चाहिए तो ऐसे में प्रतिवादी उसी मुकदमे में प्रति दावा या काउंटर क्लेम दाखिल कर सकता है।
विशेषताएं:
यह Written Statement का हिस्सा होता है।
अलग से मुकदमा दायर करने की आवश्यकता नहीं होती।
इसमें प्रतिवादी, वादी के विरुद्ध दावा करता है जैसे कि वह वादी हो।
उदाहरण:
अगर वादी कहता है कि प्रतिवादी ने 50 लाख उधार लिया था और उसके द्वारा वापस नहीं किया गया, तो प्रतिवादी काउंटर क्लेम में यह कह सकता है कि कि वादी द्वारा जो सेवा प्रदान की गई थी वह सही नहीं थी, इसलिए उसे वादी की तरफ से हर्जाने स्वरूप 25 लाख वापस देने चाहिए।
2. वादी Counter Claim का जवाब कैसे देता है?
जब प्रतिवादी Counter Claim करता है, तब वादी को उस पर उत्तर (Reply) देने का अधिकार है, जिसे विधिक भाषा में प्रत्युत्तर (Replication) कहा जाता है।
Replication वही भूमिका निभाती है जो Written Statement निभाती है, लेकिन यह अब वादी की तरफ़ से आती है — प्रतिवादी के आरोपों के उत्तर में।
3. प्रत्युत्तर (Replication) क्या है?
परिभाषा:
प्रत्युत्तर (Replication) एक दस्तावेज होता है जिसमें वादी के द्वारा प्रतिवादी द्वारा लिखित कथन (या Counter Claim) में लगाए गए आरोप का खंडन किया जाता है और अपना पक्ष स्पष्ट किया जाता है।
प्रत्युत्तर (Replication) की आवश्यकता कब होती है?
Replication की आवश्यकता तब होती है जब-
प्रतिवादी ने Counter Claim किया हो।
प्रतिवादी की Written Statement में ऐसे तथ्य हों जो नए हों या झूठे हों।
न्यायालय के निर्देशानुसार
(सिविल प्रक्रिया संहिता में स्पष्ट प्रावधान नहीं है कि हर मामले में प्रत्युत्तर देना अनिवार्य है, लेकिन न्यायालय की अनुमति लेकर यह दाखिल की जा सकती है।)
4. प्रत्युत्तर (Replication) की Legal स्थिति
प्रत्युत्तर (Replication) दाखिल करने के लिए न्यायालय की अनुमति लेना ज़रूरी है। Supreme Court ने यह स्पष्ट किया है कि:- प्रत्युत्तर तभी जरूरी है जब प्रतिवादी की बातों में कोई नया तथ्य सामने आता है। अनावश्यक प्रत्युत्तर देने से से मुकदमे की प्रक्रिया लंबी होगी ।
5. प्रत्युत्तर (Replication) में क्या होना चाहिए?
Replication वही ढांचा अपनाता है जो Written Statement-
इसमें प्रतिवादी के Counter Claim का खंडन किया जाता है्
नए तथ्यों की स्पष्टीकरण के लिए दाखिल किया जाता है।
इसको वैधानिक बचाव का विवरण के लिए भी दाखिल करते है।
इसके माध्यम से प्रमाण / दस्तावेज़ संलग्न किया जाता है ्
6. व्यवहारिक उदाहरण
मुकदमा-
वादी द्वारा प्रतिवादी पर 50 लाख रुपये का recovery suit दाखिल किया। प्रतिवादी ने Counter Claim में कहा कि वादी द्वारा मानसिक प्रताड़ित किया गया है ्, जिसके लिए 25 लाख रुपये हर्जाना देने की मांग की ।
प्रत्युत्तर-
वादी ने कहा कि प्रतिवादी द्वारा लगाये आरोप गलत है, प्रतिवादी को किसी प्रकार की कोई मानसिक प्रताड़ना नहीं हुई है। और प्रतिवादी मुकदमें केवल देरी करना चाहते है इसी नीयत से ऐसा कर रहे है।
7. क्या प्रत्युत्तर देना अनिवार्य होता है?
प्रत्युत्तर देना अनिवार्य नहीं है । केवल उन्हीं मामलों में प्रत्युत्तर दिया जाता है-
जहां तथ्य नए हों।
अदालत की अनुमति से दिया जाता है।
या अदालत विशेष निर्देश होने पर दिया जाता है ।
यदि मुकदमें वादी द्वारा प्रति दावा (Counter Claim) का उत्तर नहीं जाता है तो ऐसी स्थिति में न्यायालय द्वारा प्रतिवादी के द्वारा प्रस्तुत दावे को सही मान लेती है/सकती है।
8. समयसीमा और प्रक्रिया
सिविल प्रक्रिया संहिता में प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए कोई निर्धारित समयसीमा नही दी गयी है, लेकिन आमतौर पर-
यदि न्यायालय निर्देशित करती है तो निर्धारित समयावधि के भीतर देना आवश्यक होता है।
किसी कारणवश देरी होने पर देरी होने का कारण न्यायालय के समक्ष बताना होता है।
9. निष्कर्ष (Conclusion)
प्रति दावा (Counter Claim)और प्रत्युत्तर (Replication) सिविल वादों के लिए महत्वपूर्ण और आवश्यक है।न्यायालय प्रति दावा के माध्यम से प्रतिवादी को वादी के खिलाफ दावा करने का अवसर प्रदत्त करता है ,और प्रत्युत्तर के माध्यम से वादी को उन आरोपों का खंडन करने का भी अवसर प्रदान करता है।
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