हिन्दू महिलाओं से संबंधित प्रमुख निर्णय
हमारा समाज एक पितृ सत्तात्मक समाज है, यहाँ पर महिलाओं की तुलना में पुरुषों को ज्यादा महत्व दिया जाता है। हमारे देश में भी कुछ ऐसे मामले हुए है जिससे यह ज्ञात होता है कि महिलाओं को अपने अधिकार के लिए भी लड़ना पड़ता है। कभी बेटी को पिता की संपत्ति में हक पाने के लिए तो कभी ससुराल में पति की मृत्यु के बाद लड़ने के लिए। परंतु भारत की न्यायपालिका की दृष्टि में भारत के सभी नागरिक समान है और न्यायपालिका ने अपने निर्णयों के ज़रिए साबित किया है कि भारत देश महान है।
आइए ऐसे ही कुछ केस और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बारे में थोड़े विस्तार से पढ़ते है।
1 विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा केस (2020)
वादी पक्ष- इस मुकदमें में वादी द्वारा यह दावा किया गया कि क्या अगर पिता की मृत्यु 2005 के पहले हो गयी हो तो बेटी को संपत्ति में अधिकार नहीं मिलेगा?
प्रतिवादी पक्ष- इसके प्रत्युत्तर में प्रतिवादी पक्ष ने सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय प्रकाश बनाम फूलमती, 2016 को आधार बनाकर कहा कि अगर पिता की मृत्यु 2005 से पहले हो गयी हो तो बेटी को पैतृक संपत्ति की हकदार नही है।
निर्णय– सर्वोच्च न्यायालय ने 11 अगस्त 2020 को अपना निर्णय दिया कि हिंदू बेटी भी पैतृक संपत्ति में पुत्र के समान उत्तराधिकारी है, चाहे पिता की मृत्यु 2005 से पहले हो चुकी हो। साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने प्रकाश बनाम फूलमती, 2016 केस निर्णय को खारिज कर दिया।
इस निर्णय के फलस्वरूप करोड़ों हिंदू महिलाओं को न्याय मिल सका जिससे अब वह भी पैतृक संपत्ति में बराबर की उत्तराधिकारी हो गई।
2 ओमप्रकाश बनाम राधा चरन (2009)
वादी पक्ष- इस मुकदमें में वाद पक्ष की तरफ से दावा दाखिल किया गया कि हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत पति की मृत्यु हो जाने पर विधवा को संपत्ति में अधिकार दिया गया है। वह ससुराल में रह सकती है एवं उसे घर से निकालना अवैध और असंवैधानिक कदम है।
प्रतिवादी पक्ष- जवाब में प्रतिवादी पक्ष कहना था कि पति की मृत्यु हो जाने की स्थिति में पत्नी को पति की संपत्ति में अधिकार है परन्तु घर में रहने का कोई अधिकार नही बचा है।
निर्णय- सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि हिन्दू दत्तक ग्रहण और भरणपोषण अधिनियम 1956 की धारा 19 के परिप्रेक्ष्य में विधवा ससुराल में तब तक रहने की हकदार है जब तक वह पुनर्विवाह नही कर लेती है। पति की मृत्यु के बाद विधवा को ससुराल में रहने का कानून अधिकार प्राप्त है। साथ ही अगर विधवा के पास संपत्ति न होने की ससुराल पक्ष द्वारा भरणपोषण करना अनिवार्य है।
3. नवीन कोहली बनाम नीलू कोहली (2006)
वादी पक्ष- इस मुकदमें में वादी की तरफ से यह दावा किया गया कि उसकी पत्नी उसके साथ अपमानजनक एवं मानसिक रूप से क्रूर व्यवहार करती है। उनकी पत्नी ने उन पर झूठे आरोप लगाए, उनकी छवि को खराब किया और मानसिक प्रताड़ित किया है। विदित हो कि इनकी शादी को 20 साल हो चुका था।
प्रतिवादी पक्ष- इसमें प्रतिवादी पक्ष की तरफ से कहा गया कि उनके पति के आरोप झूठे एवं बेबुनियाद है, शादी में समस्याएं आम बात है परन्तु इसका मतलब क्रूरता नही कहा जा सकता। सारे आरोप तलाक़ लेने के लिए मनगढंत बनाया गया है।
निर्णय- सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि मानसिक क्रूरता तलाक़ के लिए एक वैध आधार है। पति-पत्नी के बीच जब रिश्ता जब हद से ज्यादा बिगड़ जाए तो ऐसी स्थिति में तलाक़ लिया जा सकता है।
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