Issue of Summons to the Defendant – Procedure, Types, and Legal Provisions
परिचय
भारतीय न्यायिक प्रक्रिया में जब कोई मुकदमा दर्ज किया जाता है प्रतिवादी को सम्मन जारी करना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया से न्यायालय सुनिश्चित करता है कि किसी को भी बिना सूचना और सुनवाई का अवसर दिये दंड नहीं दिया जाना चाहिए।
इस लेख में सम्मन में हम सम्मन की परिभाषा क्या है, इसका उद्देश्य, प्रक्रिया आदि के बारे में जानेंगे।
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आइऐ आज का लेख शुरू करते है।
सम्मन से संबंधित कानूनी प्रावधान
सम्मन जारी किये जाने की प्रक्रिया सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908
सम्मन क्या है?
सम्मन वह कानूनी दस्तावेज है जिसे न्यायालय द्वारा जारी किया जाता है। सम्मन के माध्यम से किसी व्यक्ति को, विशेष तौर पर प्रतिवादी को सूचित किया जाता है अथवा अदालत में उपस्थित होने का आदेश दिया जाता है। दीवानी मामलों में सम्मन द्वारा प्रतिवादी को सूचना दी जाती है कि उसके विरूद्ध मुकदमा दाखिल किया गया और उसको एक निश्चित तिथि (नियत दिनांक) पर न्यायालय में उपस्थित होना है।
सम्मन का उद्देश्य
न्यायालय द्वारा प्रतिवादी को सम्मन जारी करके यह सुनिश्चित करता है कि:
• प्रतिवादी को सूचना- सम्मन के माध्यम से प्रतिवादी को मुकदमें की जानकारी देना।
• प्रतिवादी को उत्तर देने का अवसर- इसके माध्यम से प्रतिवादी को भी वादी के समान अपनी बात रखने का अवसर प्रदान करना।
• न्यायिक प्रक्रिया- न्यायालय सुनिश्चित करता है कि प्रक्रिया न्यायसंगत और निष्पक्ष रहे।
सम्मन के प्रकार
साधारण सम्मन-
साधारण सम्मन के माध्यम से प्रतिवादी को सूचना दी जाती है कि उसके विरूद्ध मुकदमा दाखिल किया गया है, और वह न्यायालय में उपस्थित होकर अपना लिखित उत्तर दाखिल करें।
मुद्दोंं के निर्धारण के लिए सम्मन-
जब प्रतिवादी मुकदमें में हाजिर हो जाता है, उसके बाद यह सम्मन सुनवाई के अगले चरण के लिए भेजा जाता है।
गवाहों के लिए सम्मन-
जब किसी पक्ष द्वारा अपने पक्ष में गवाह पेश करना चाहता है तो ऐसे में न्यायालय द्वारा गवाहों को सम्मन जारी किया जा सकता है।
सम्मन जारी करने की प्रक्रिया
सर्वप्रथम वाद कर्ता द्वारा न्यायालय में वाद पत्र दाखिल किया जाता है। उसके बाद न्यायालय द्वारा उस वाद पत्र का पंजीकरण एवं जांच करता है कि वाद विधिसम्मत है या नहीं। विधिसम्मत पाए जाने पर न्यायालय सम्मन जारी करने का आदेश दिया जाता है।
सम्मन की तैयारी
न्यायालय द्वारा सम्मन तैयार किया जाता है जिसमें निम्न विवरण होता है-
• प्रतिवादी का नाम व पता
• वाद का संक्षिप्त विवरण
• न्यायालय में उपस्थित होने का दिनांक
• लिखित उत्तर दाखिल करने का आदेश
• न्यायालय की मुहर व हस्ताक्षर
सम्मन की सेवा (तामील)
प्रतिवादी को विभिन्न तरीके से सम्मन भेजा जा सकता है-
• व्यक्तिगत सेवा द्वारा(Order V Rule 9) ।
• पारंपरिक डाक द्वारा ।
• रजिस्टर्ड डाक द्वारा ।
• इलेक्ट्रॉनिक माध्यम द्वारा- जैसे कि ईमेल, व्हाट्सएप आदि।
• वैकल्पिक सेवा (Order V Rule 20) – जब प्रतिवादी द्वारा जानबूझकर सम्मन लेने से बचता है तो समाचार पत्र में प्रकाशन, प्रतिवादी के घर के बाहर चस्पा करना, ईमेल या डिजिटल माध्यम से सूचना देना न्यायालय सुनिश्चित करता है।
अधिकार क्षेत्र से बाहर सेवा-
यदि प्रतिवादी न्यायालय की क्षेत्राधिकार से बाहर निवास करता है, ऐसी स्थिति में उस क्षेत्र की स्थानीय अदालत के माध्यम से सम्मन भेजा जाता है।
विदेश में रहने पर-
प्रतिवादी विदेश में रहने की स्थिति में सम्मन, अन्तर्राष्ट्रीय डाक सेवा द्वारा या राजनयिक (Embassy) के माध्यम से भेजा जा सकता है।
सम्मन की समय-सीमा
प्रतिवादी को सम्मन वाद में नियत तिथि से कम से कम 30 दिन पूर्व भेजा जाना चाहिए, जिससे प्रतिवादी को उत्तर की तैयारी के लिए पर्याप्त समय मिल सके।
सम्मन की सेवा का प्रमाण
सम्मन भेजने का प्रमाण होना आवश्यक होता है। इसे निम्न तरीके से प्रस्तुत कर सकते है:
• प्रासेस/प्रक्रिया सर्वर का हलफनामा।
• डाक विभाग की रसीद ।
• किसी भी माध्यम की सेवा का प्रमाण पत्र ।
• डिजिटल सेवा का स्क्रीनशॉट या रिपोर्ट।
सम्मन की सेवा न होने पर क्या होगा?
सम्मन, प्रतिवादी तक नहीं पहुंचता या विधिपूर्वक तामील नही होने पर:
• मुकदमा खारिज किया जा सकता है
• प्रतिकूल आदेश पारित किया जा सकता है।
• सुनवाई को स्थगित किया जा सकता है।
यदि प्रतिवादी उपस्थित न हो तो क्या होगा?
आदेश Order IX Rule 6 CPC के अन्तर्गत, सम्मन विधिपूर्वक तामील होने के बावजूद यदि प्रतिवादी न्यायालय में उपस्थित नहीं होता है तो न्यायालय वाद पत्र को एकपक्षीय (Ex Parte) कर सकता है और एकपक्षीय निर्णय पारित कर सकता है।
सम्मन की पुनः तामील
किसी कारणवश सम्मन वापस लौट आता है और सेवा नहीं होने पर, वाद कर्ता:
• नया पता देकर पुनः सम्मन भेज सकता है।
• न्यायालय से सेवा के अन्य माध्यमों की अनुमति मांग सकता है।
• वैकल्पिक सेवा की मांग कर सकता है।
सम्मन की भूमिका
सम्मन न होने पर कोई भी न्यायिक/कानूनी प्रक्रिया एकतरफा या अनुचित हो सकती है।
यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत ” Audi Alteram Partem”- अर्थात ” दूसरे पक्ष को भी सुनो ” को बनाये रखने में सहायक है।
निष्कर्ष:
सम्मन जारी करना एक कानूनी प्रक्रिया के साथ न्यायिक प्रक्रिया भी है। यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि किसी भी व्यक्ति को बिना सूचना दिये और बिना अपनी बात रखने का अवसर दिये बिना दंडित नही किया जाना चाहिए।
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