Types of court in india

भारत में कितने प्रकार की कोर्ट है?

हमारा भारत देश एक संवैधानिक देश है। जहां पर भारत के सभी नागरिक संविधान के अधीन है। इसीलिए न्यायपालिका सर्वोच्च एवं स्वतंत्र है। अब जहां पर लोग होंगे तो किसी न किसी प्रकार का उनमें आपसी वैमनस्य, तनाव, लड़ाई-झगड़ा, विवाद और मतभेद भी अवश्य होगा, जिनमें कुछ जघन्य अपराध भी करने वाले होंगे ।

ऐसे किसी भी प्रकार के वाद-विवाद एवं अपराध के निपटान के लिए भारतीय संविधान ने न्यायपालिका का प्रावधान किया है।

भारत में मुख्यतः 5 प्रकार की कोर्ट है।

  • 1. सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court)

• यह भारत की सर्वोच्च अदालत/कोर्ट है।• इस न्यायालय को चीफ ऑफ जस्टिस (CJI) द्वारा संचालित किया जाता है।

• इस न्यायालय को चीफ ऑफ जस्टिस (CJI) द्वारा संचालित किया जाता है।

• इस न्यायालय के माध्यम से संविधान की रक्षा की जाती है, किसी प्रकार का कानून संविधान के विरुद्ध बनता है तो सर्वोच्च न्यायालय उस कानून को असंवैधानिक घोषित कर सकता है।

• इस न्यायालय के माध्यम से सिविल, आपराधिक, संवैधानिकता संबंधित एवं अन्य कुछ विशेष मामले का अंतिम निर्णय लिया जाता है। यहाँ पर ही निम्न एवं उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध अपील भी की जा सकती है।

• मौलिक अधिकार के उल्लंघन होने की स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय रिट (writ) जारी कर सकता है।

• राज्यों के बीच विवाद एवं राज्य तथा केन्द्र के बीच विवाद की स्थिति में निर्णय करता है।

• वैदेशिक समझौते, या विवाद का निस्तारण भी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ही किया जाता है।

• सर्वोच्च न्यायालय के आदेश या निर्णय के विरुद्ध या सर्वोच्च न्यायालय को लेकर भ्रामक/गलत बयान देने की स्थिति में दण्ड दे सकता है।

• सरकार के किसी भी कार्य को जांचने का भी अधिकार है।

• राष्ट्रपति को संवैधानिक मामले पर कानूनी सलाह देने का कार्य करता है।

2. उच्च न्यायालय (High Court)

• भारत में मुख्यतः 25 उच्च न्यायालय है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय, भारत का सबसे बड़ा उच्च न्यायालय है। कुछ ऐसे भी उच्च न्यायालय हैं जो दो या दो से ज्यादा राज्यों के मामलों को देखने के लिए बनाए गए है। जैसे पंजाब- हरियाणा उच्च न्यायालय, और गुवाहाटी उच्च न्यायालय जो कि असम, नागालैंड, मिजोरम व अरूणाचल प्रदेश राज्य के लिए बनाया गया है।

• जिला न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध सिविल और आपराधिक मुकदमें की अपील उच्च न्यायालय में की जाती है और दोनों तरह के मुकदमे के लिए उच्च न्यायालय अंतिम अपील कोर्ट होता है।

• मौलिक अधिकारों के उल्लंघन होने पर उच्च न्यायालय रिट जारी कर सकता है। जिसमें हैबियस कार्पस, मैंडामस, प्रोहिबिशन, न्यायिक समीक्षा तथा क्वो वारंटो जारी होता है।

• चुनाव संबंधी विवाद या राज्य सरकार से संबंधित विवाद उच्च न्यायालय में  प्रत्यक्ष रूप से दाखिल किया जा सकता है।

• उच्च न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले सभी जिला न्यायालयों के कामों का निरीक्षण एवं निगरानी भी करता है। किसी जिला न्यायालय द्वारा अगर कोई कानून के विरुद्ध कार्य करने की स्थिति में उच्च न्यायालय उस निर्णय को बदल भी सकता है एवं रद्द भी कर सकता है।

• राज्यपाल द्वारा अगर कोई वैधानिक/कानूनी सलाह या जानकारी मांगी जाती है तो उच्च न्यायालय अपनी कानूनी सलाह देता है।

• किसी परिस्थिति में यदि कोई उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध कार्य करता है तो  उच्च न्यायालय उसके खिलाफ कार्रवाई कर सकता है।

• सार्वजनिक याचिकाओं को भी उच्च न्यायालय में दाखिल किया जाता है।

• उच्च न्यायालय में विशेष विवाह अधिनियम एवं हिन्दू विवाह अधिनियम से भी संबंधित मुकदमे/वाद भी सुने जाते है।

3. जिला न्यायालय ( District Court)

• भारत में जितने जिलें हैं। प्रत्येक जिला का एक जिला न्यायालय है।जिसमें सभी प्रकार के सिविल एवं आपराधिक मुकदमें दाखिल किये जाते है।

•प्रत्येक जिला का एक मुख्य जिला न्यायाधीश होता है। 

• प्रत्येक जिलें में दीवानी न्यायालय होता है, सबसे उच्च न्यायाधीश जिला जज होता है। जिसमें 5 लाख रुपये मूल्यांकन से ज्यादा के सिविल वाद सुनवाई सिविल जज सीनियर डिवीजन द्वारा देखा जाता है।

• मुंसिफ/ अवर सिविल जज जूनियर डिवीजन द्वारा 5 लाख से कम मूल्यांकन वाले वाद देखे जाते है।

• सत्र न्यायाधीश/शेसन जज द्वारा हत्या, बलात्कार जैसे बड़े़ मुकदमें की सुनवाई की जाती है।

•ऐसे आपराधिक मामले जिनमें सज़ा 7 वर्ष तक हो सकती है कि सुनवाई मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM) द्वारा की जाती है।

• छोटी आपराधिक धाराओं की कार्यवाही की सुनवाई न्यायिक मजिस्ट्रेट (प्रथम एवं द्वितीय श्रेणी के मजिस्ट्रेट) द्वारा सुना जाता है।

• जिला न्यायालय में ज़मीनी विवाद, विवाह विच्छेद संबंधित विवाद एवं गुजाराभत्ता संबंधित,घरेलू हिंसा, उपभोक्ता संबंधित मामले, हत्या, बलात्कार, चोरी, डकैती, साइबर धोखाधड़ी आदि संबंधित वाद दाखिल किये जाते है।

4. विशेष न्यायालय (Special courts)

पारिवारिक न्यायालय ( Family court)- इसमें तलाक़ (Divorce), पत्नी के निर्वाह निधि (alimony), बच्चे की अभिरक्षा( child custody)   पारिवारिक विवाद, घरेलू हिंसा से संबंधित वाद दाखिल किया जाता है। इस न्यायालय द्वारा हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई कानून के आधार पर निर्णय किया जाता है।

किशोर न्यायालय ( Juvenile court)- इस न्यायालय में 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों द्वारा किये गये अपराध की सुनवाई की जाती है, जिसमें बच्चों को सज़ा न देकर उनको बाल सुधार-गॄह भेज दिया जाता है।

उपभोक्ता न्यायालय (Consumer court)- इस न्यायालय में किसी उपभोक्ता, को किसी दुकानदार या किसी सेवा प्रदाता द्वारा गलत सामान, या खराब सेवा एवं धोखेधड़ी की जाती है तो ऐसी स्थिति में उपभोक्ता,उपभोक्ता समूह या एनजीओ द्वारा भी न्यायालय में मुकदमा किया जा सकता है। जिसमें 20 लाख तक के भुगतान के लिए जिला उपभोक्ता न्यायालय में, 20 लाख से 1 करोड़ तक के लिए राज्य उपभोक्ता न्यायालय, एवं 1 करोड़ से ऊपर के मामले राष्ट्रीय उपभोक्ता न्यायालय(दिल्ली) में मुकदमा किया जाता है।

सीबीआई न्यायालय (CBI Court)- इस न्यायालय में आर्थिक धोखेधड़ी, भ्रष्टाचार संबंधित, राजनैतिक घोटाला एवं उच्च वर्गीय मामले सीबीआई के आधार वाले मुकदमें दाखिल किये जाते है।

एनआईए न्यायालय ( NIA Court)-  इस न्यायालय में राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित, देशद्रोह से संबंधित एवं आतंकवाद से संबंधित जिसकी जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) के अधीन आती है का मुकदमा चलता है।

त्वरित न्यायालय ( Fast track Court)- इस न्यायालय में एक निश्चित समय के भीतर हत्या, बलात्कार, महिला सुरक्षा, आपातकालीन मुकदमें की सुनवाई सुनिश्चित की जाती है।

5. लोक अदालत (Lok Adalat)

• प्रत्येक 2-3 महीने लोक अदालत सम्पूर्ण देश में लोक अदालत का आयोजन किया जाता है।

• लोक अदालत में गाड़ी का चालान कम रूपये में, बैंक लोन का समझौता, बिजली भुगतान, पानी भुगतान, तलाक, पारिवारिक समझौता, जमीनी विवाद से संबंधित समझौता आदि किया जाता है।

• इसमें बिना अधिवक्ता भी मुकदमें में समझौता किया जा सकता है।

• सर्वोच्च न्यायालय ने त्वरित मुकदमा निपटान के लिए राष्ट्रीय लोक अदालत, स्थायी लोक अदालत, मोबाइल लोक अदालत, मेगा लोक अदालत का प्रावधान कर रखा है।

• किसी भी लोक अदालत में प्रत्यक्ष रूप से भी मुकदमा दर्ज करा सकते है।

• लोक अदालत में न्यायालय के माध्यम से जो समझौता होता है उसमें लिखित निर्णय दिया जाता है।

धन्यवाद! इसी प्रकार की कानूनी जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट www.judiciaryofindia.com पर बने रहें।

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