What is PIL?

भारत के न्यायतंत्र में PIL (Public interest litigation) लोकहित याचिका कानून के एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में जाना जाता है। PIL का प्रमुख उद्देश्य सामाजिक हित में सरकारी नीतियों में सुधार लाना है। आज के इस लेख में हम PILके कार्य के प्रकिया, महत्व और उनके द्वारा लाए गए बदलाव को जानेंगे।

आइए आज के लेख को शुरू करते है।

PIL (Public Interest Litigation)-लोकहित याचिका क्या है?

PIL एक ऐसी कानूनी प्रकिया है, जिसके अंतर्गत किसी भी व्यक्ति या संस्थान द्वारा जनहित संबंधित मुद्दे पर न्यायालय में याचिका दायर की जाती है, चाहे उसमें स्वयं का व्यक्तिगत रूप से संबंध नही भी हो। इसका प्रमुख उद्देश्य गरीब, समाज से वंचित और कमज़ोर लोगों के हित और सुरक्षा के लिए सरकारी नीतियों और प्रशासन की लापरवाही के खिलाफ आवाज़ उठाना है।

PIL ऐतिहासिक पृष्ठभूमि-

इसकी शुरुआत सन 1980 ई० में हुई। जिसमें ऐसे मामले जो सार्वजनिक हित के लिए महत्वपूर्ण थे, जैसे पर्यावरण का संरक्षण, भ्रष्टाचार, मानवाधिकार पर ध्यान दिया गया। शुरुआत में न्यायाधीश पी.एन.भगवती, वी.आर. कृष्णा अय्यर ने इसे बढ़ावा देने में काफी सहयोगपूर्ण कदम उठाये।

संवैधानिकता-

PIL दाखिल करने के लिए मुख्यतः भारतीय संविधान में दो प्रमुख अनुच्छेद प्रमुख आधार है।

अनुच्छेद 32- इसे संविधान की आत्मा भी कहा जाता है। इसमें कहा गया है कि “प्रत्येक व्यक्ति को अपने मौलिक अधिकारों की सुरक्षा का अधिकार प्राप्त है और यदि किसी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने पर, वह सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सकता है।

अनुच्छेद 226- इसके अनुसार उच्च न्यायालयों को न केवल मौलिक अधिकारों के उल्लंघन होने के मामले में साथ ही अन्य कानूनी अधिकारों के हनन की स्थिति में भी हस्तक्षेप करते हुए प्रशासनिक जवाबदेही सुनिश्चित करने का अधिकार है।

PIL का लक्ष्य-

सामाजिक सुधार- मानवाधिकार, शिक्षा, भूखमरी, भ्रष्टाचार, पर्यावरण संरक्षण आदि संबंधित मुद्दे पर सुधार के लिए न्यायालय का हस्तक्षेप के लिए याचिका दायर करना।

सरकारी जवाबदेही- प्रशासनिक निष्क्रियता पर एवं भ्रष्टाचार पर सरकार को जवाबदेह बनाना।

सामाजिक न्याय- न्याय से वंचित और बेसहारा लोगों के मौलिक कर्तव्यों के लिए न्याय तक सीधी पहुँच बनाना।

न्यायिक सक्रियता- सामाजिक अन्याय के खिलाफ सक्रिय रूप से न्यायालय को हस्तक्षेप का अवसर प्रदान करने के लिए।

PIL दायर की प्रकिया क्या है?

मामले का चुनाव- सर्वप्रथम ऐसे मामले जो जनहित से संबंधित हो और सामाजिक हित समाहित हो का चयन किया जाता है। (कई बार न्यायालय स्वयं से ही (Suo Moto) मामलो का संज्ञान ले सकती है।)

याचिका तैयार करना- आवश्यक दस्तावेज, कानूनी आधार और मामले के महत्वपूर्ण तथ्यों के साथ याचिका तैयार किया जाता है।

न्यायालय का चयन- याचिका मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामले अनुच्छेद 32 के तहत सर्वोच्च न्यायालय मे दायर की जाती है। अन्य किसी तरह के मामले होने पर अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय में दायर किया जाता है।

निर्णय- याचिका की गंभीरता और उचित पाये जाने का मूल्यांकन के आधार पर न्यायालय आवश्यक दिशा-निर्देश और कारवाई का आदेश जारी करती है।

PIL के कुछ उदाहरण-

हुसैनारा खातून बनाम बिहार राज्य (1979)- आरोपी के खिलाफ चल रहे कानूनी मुकदमें में परीक्षण की दुर्दशा को उजागर करने और उनके जल्दी न्याय की सुनवाई के लिए याचिका।

एम. सी. मेहता बनाम भारत संघ (1986) – गंगा नदी में प्रदूषण के रोकथाम के लिए सरकार को आवश्यक कदम उठाने के लिए याचिका।

ओल्गा टेलिस बनाम बम्बई मुंसिपल कॉर्पोरेशन(1985 –फुटपाथ पर रहने वाले लोगों के अधिकारो की सुरक्षा के लिए याचिका।

PIL प्रमुख चुनौतियां और आलोचना

अतिरिक्त भार- न्यायालय पर मामलों का अतिरिक्त बोझ।

दुरूपयोग- व्यक्तिगत लाभ और राजनीतिक लाभ के लिए दुरूपयोग।

न्यायिक निर्णय पर असर-कभी-कभी राजनीतिक और प्रशासनिक दबाव स्थिति में न्यायिक निर्णय पर असर भी पड़ता है।

इसके अलावा मामले की उपयुक्तता, न्यायालय की सीमाएं आदि प्रमुख चुनौतियां भी प्रमुख है।

निष्कर्ष:

लोक हित याचिका (PIL) , भारतीय न्यायालय के लिए एक सशक्त एवं महत्वपूर्ण उपकरण है। इसने लोक हित में महत्वपूर्ण मुद्दों को उजागर करने एवं समाधान दिलाने में प्रमुख भूमिका निभाई है। कुछ ऐसे भी मामले आये है जिसमें इसका दुरूपयोग किया गया है, परंतु इससे बचाव के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने समय-समय पर कठोर निर्देश भी दिये है। PIL का सही प्रयोग द्वारा समाज में न्याय और सुधार लाया जा सकता है।

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1 comment

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Anonymous

Very informative

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