Suit Filing and Scrutiny Process in Indian Courts

परिचय

न्यायिक प्रक्रिया में मुकदमें का पंजीकरण (Registration) करना और मुकदमें की जांच (Scrutiny) करना अति महत्वपूर्ण है। इस प्रक्रिया के माध्यम से न्यायालय यह सुनिश्चित करता है कि विधिक दृष्टि से सक्षम और उपयुक्त मुकदमें ही स्वीकार किये जायेंगे। इस लेख में भारतीय सिविल प्रक्रिया संहिता (Code of Civil Procedure, 1908) के अन्तर्गत पंजीकरण और जांच की की प्रक्रिया को हम विस्तार से जानेंगे।

आइये इस लेख को शुरू करते है।

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मुकदमें की क्या परिभाषा है?

मुकदमा वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से कोई भी व्यक्ति अपने अधिकार, सुरक्षा और प्रवर्तन के लिए न्यायालय का सहारा लेता है। इसमें वाद दाखिल करने वाले को वादी (Plaintiff) और जिसके ऊपर मुकदमा किया जाता है  उसे प्रतिवादी (Defendant) कहते हैं।

मुकदमें का प्रारंभ ( Institution of Suit)

सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 26 के अनुसार- कोई भी मुकदमा वाद पत्र (Plaint) के माध्यम से ही प्रारंभ किया जा सकता है। न्यायालय में वादी द्वारा प्रस्तुत वाद पत्र ही मुकदमा की नींव होता है।

वाद में निम्न आवश्यक बातें होनी चाहिए-

1.पक्षकार (वादी और प्रतिवादी) का नाम तथा पता

2.अधिकारों का उल्लंघन का विवरण

3.राहत की मांग

4.सबूतों और महत्वपूर्ण दस्तावेजों का उल्लेख

वाद पत्र की प्रस्तुति ( Presentation of Plaint)

वाद पत्र को तैयार करने के बाद इसे संबंधित न्यायालय में प्रस्तुत करने के समय कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना आवश्यक है-

विधिक शुल्क (Court Fees) –  Court Fees Act,1870  के अन्तर्गत जब कोई व्यक्ति अपना वाद न्यायालय में दाखिल करता है तब उसे उस वाद के आवश्यकता नुसार कुछ न्याय शुल्क न्यायालय में टिकट या स्टांप के रूप मेन जमा करना होता है इसे ही न्याय शुल्क कहा जाता है।

वकालतनामा (Vakalatnama) – जब कोई भी पक्षकार या वादी अपने किसी भी विवाद को किसी भी न्यायालय के सामने प्रस्तुत करना चाहता है तब वह अपना वाद प्रस्तुत करने का अधिकार किसी अधिवक्ता के माध्यम से  उसके द्वारा अपना पक्ष रखता है तब अधिवक्ता उस व्यक्ति का पक्ष न्यायालय के सामने वकालतनामा के ज़रिए रखता है। और उस अधिकार पत्र को वकालतनामा कहते है

संलग्न दस्तावेज (Attached Documents) – पत्रावली में सभी आवश्यक दस्तावेज की प्रतिलिपि संलग्न करना होता है।

वाद के पंजीकरण की प्रक्रिया (Registration of Suit) –

मुकदमा दर्ज होने के बाद न्यायालय में उस वाद के पंजीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ की जाती है।

•वाद पत्र की प्राप्ति (Receipt of Plaint) – न्यायालय द्वारा वाद पत्र को स्वीकार करने के बाद उस पर एक क्रम संख्या अंकित की जाती है। उसी क्रम संख्या संख्या से मुकदमा पहचाना जाता है।

• केस डायरी/ रजिस्टर में प्रविष्टि (Entry in Case Diary/Register) – वाद पत्र की प्राप्ति के बाद वाद पत्र को मुकदमा रजिस्टर/डायरी में दर्ज किया जाता है, जिसमें मुकदमा की संख्या, पक्षकार ( वादी व प्रतिवादी), तारीख, वकीलों का विवरण आदि लिखा जाता है।

• अदालत द्वारा स्वीकार्यता (Cognizance by Court) – न्यायालय के समक्ष वाद पत्र को प्रस्तुत करने के बाद न्यायालय यह देखता है कि क्या यह मुकदमा सुनवाई के योग्य है या नही है। मुकदमा सुनवाई योग्य होने पर मुकदमा दर्ज कर लिया जाता है और आगे की प्रक्रिया की जाती है।

जांच की प्रक्रिया (Scrutiny of the Suit)

मुकदमा के पंजीकरण के बाद मुकदमा में (Scrutiny) प्रस्तुत वाद पत्र विधिक और प्रक्रियात्मक दृष्टि से ठीक है या नही है, के आधार पर जांच की जाती है।

वाद पत्र जांच के प्रमुख आधार

न्यायालय के रीडर या क्लर्क यह जांच करते है कि-

• क्या वाद पत्र स्पष्ट रूप से टाइप या लिखा गया है?

• क्या सभी आवश्यक कॉलम भरे गयें है?

• क्या उचित न्यायालय शुल्क संलग्न किया गया है?

तकनीकी त्रुटि होने पर

किसी प्रकार की तकनीकी त्रुटि होने की स्थिति में जैसे- कोर्ट फीस गलत जमा होना, जानकारी अधूरी होना, अपूर्ण दस्तावेज होने पर वादी को सूचना दी जाती है कि निर्धारित समय में त्रुटि सही करें।

विधिक अपूर्णताएं

यदि वाद पत्र विधिक दृष्टि त्रुटिपूर्ण होने पर जैसे- समयावधि अधिक यानि समयावधि से बाहर प्रस्तुत किया गया हो, वादी का पक्ष विधिक रूप से अस्थिर होने पर, या क्षेत्रीय अधिकार से बाहर या अन्य अदालत में प्रस्तुत किया गया हो तो न्यायालय द्वारा वाद पत्र अस्वीकृत किया जा सकता है।

Order VII Rule 11: वाद पत्र (Plaint) को खारिज करने के प्रमुख आधार-

न्यायालय प्रमुख आधार पर वाद पत्र खारिज कर सकता है:-

यदि न्यायालय की अधिकारिता से बाहर हो।

• यदि वाद पत्र, वाद के कारण को स्पष्ट नहीं करता हो।

• यदि राहत स्पष्ट रूप से प्राप्त नहीं की जा सकती हो।

• यदि वादी द्वारा आवश्यक शुल्क नही दिया गया हो।

निष्कर्ष:-

न्यायालय में वाद दाखिल होने के बाद पंजीकरण और जांच-पड़ताल की प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि वाद विधिक नियमानुसार दाखिल किया गया है और विचार योग्य है। इससे न्यायालय में अनावश्यक मुकदमों को दाखिल करने से रोका जा सकता है जिससे न्यायालय का समय बचाया जा सकता है । प्रारंभिक परीक्षण, न्यायिक व्यवस्था की पारदर्शिता और कुशलता सुदृढ़ भी बनाती है।

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