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भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा संविधान है। जिसमें न्यायपालिका की प्रमुख भूमिका है। समय-समय पर सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय द्वारा कुछ ऐसे निर्णय किये गये है जिसके फलस्वरूप कानून की व्याख्या के साथ- साथ समाज एवं राजनीति पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा।

आज हम इस लेख में सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख निर्णयों में तीन प्रमुख निर्णय के बारे में पढ़ेगें।

केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य (1962)

शायरा बानो बनाम भारत संघ (2017)

सबरीमाला मंदिर केस (2018)

आइये लेख पढ़ते हैं

1.केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य (1962)

•• केदारनाथ सिंह, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के प्रमुख नेता थे जिन्होंने एक भाषण में सरकार की आलोचना में कहा कि “सत्ताधारी नेता गरीबों को लूट रहें है और उनकी क्रांति आएगी।” जिसके फलस्वरूप बिहार सरकार ने IPC धारा 124A (देशद्रोह) के तहत उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कर दिया।

•• इस मुकदमें में सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि देशद्रोह कानून तभी लागू होगा जब बयान या भाषण हिंसा भड़काने के लिए हो, सरकार को गिराने के लिए हिंसा भड़काई जाए तथा अराजकता और विद्रोह के लिए उकसाया जाए। सिर्फ सरकार की आलोचना करने से कर देने भर मात्र से देशद्रोह का मुकदमा नही चला सकते है। किसी के द्वारा शांतिपूर्ण रूप से आलोचना की जाती है तो “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19 (1) (a) के तहत सुरक्षित रहेगा।

•• इसमें केदारनाथ सिंह को दोषी माना गया एवं सचेत किया गया कि भविष्य में इस कानून का दुरूपयोग नही हो।

2. शायरा बानो बनाम भारत संघ (2017)

•• शायरा बानो और रिजवान अहमद का विवाह सन 2002 में उत्तर प्रदेश में हुआ। सन 2016 में उनके पति ने किसी पारिवारिक कलह की वजह से उनको तीन तलाक़ दे दिया। इसके बाद शायरा बानो ने तीन तलाक़ को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल किया। जिसमें उन्होंने तीन तलाक़, हलाला और 4 पत्नी (बहुविवाह) को चुनौती देते हुए असंवैधानिक करार देने और मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकार के रक्षा करने की मांग की।

•• सर्वोच्च न्यायालय ने 22 अगस्त 2017 को अपने निर्णय में तीन तलाक़ को असंवैधानिक घोषित कर दिया और इस प्रथा को संविधान के अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार का उल्लंघन माना।

•• केन्द्र सरकार ने तत्काल प्रभाव से ‘मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 पारित किया जिसमें तीन तलाक़ देने पर पति को 3 साल तक की प्रावधान किया गया

3. सबरीमाला मंदिर केस (2018)

•• भगवान अयप्पा को समर्पित केरल के पथानामथिट्टा जिले में सबरीमाला मंदिर स्थित है। मान्यता ये है कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी हैं, इसलिए इस मंदिर में 10-50 आयु वर्ग की महिलाओं का आना वर्जित है, क्योंकि इस वर्ग की महिलाएं मासिक धर्म के कारण स्वरूप अशुद्ध मानी जाती थी।

•• वर्ष 2006 में इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन ने सर्वोच्च न्यायालय में रिट दायर किया कि समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) व धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 25) का उल्लंघन है। जिससे महिलाओं के मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है।

•• सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को असंवैधानिक माना और प्रवेश की अनुमति प्रदान की। इस निर्णय के विरोध स्वरूप केरल में प्रदर्शन किया गया। 2 जनवरी 2019 में दो महिलाएं पुलिस सुरक्षा के साथ प्रवेश किया, उसके बाद मंदिर को शुद्धिकरण के अस्थायी रूप से बन्द कर दिया गया है। निर्णय के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई। वर्तमान में यह मामला अभी भी न्यायालय में विचाराधीन है।

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